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बिहार में साइमन कमिशन का विरोध: स्वराज की दिशा में अहम कदम (Simon Commission Protests in Bihar)

साइमन कमिशन और बिहार: स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक मोड़

1927 में जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में सुधारों पर विचार करने के लिए साइमन कमिशन का गठन किया, तब इसने पूरे देश में असंतोष और विरोध की लहर पैदा कर दी। बिहार, जो उस समय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र बन चुका था, ने इस कमिशन का जोरदार विरोध किया। यहां के नेता और जनता ने स्वराज की मांग को और मजबूती से उठाया, और साइमन कमिशन के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद की।

साइमन कमिशन: क्या था और इसका उद्देश्य

साइमन कमिशन की स्थापना 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान में सुधारों का अध्ययन करना था। लेकिन इस कमिशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिससे भारतीय नेताओं और जनता में भारी आक्रोश फैला। भारतीयों का मानना था कि उनके भविष्य पर निर्णय लेने का अधिकार उन्हीं को होना चाहिए, न कि ब्रिटिश शासकों को।

साइमन कमिशन के प्रमुख उद्देश्य:

उद्देश्यविवरण
संविधान सुधारभारतीय संविधान में सुधारों के सुझाव देना।
प्रशासनिक सुधारभारतीय प्रशासन में ब्रिटिश नियंत्रण को और मजबूत करना।
राजनीतिक ढांचे का विश्लेषणब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारत के राजनीतिक ढांचे का विश्लेषण करना।

बिहार में साइमन कमिशन का विरोध

साइमन कमिशन के खिलाफ बिहार में भी व्यापक जनांदोलन शुरू हुआ। बिहार के नेताओं ने इस विदेशी कमिशन को अस्वीकार किया और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए। 1928 में जब कमिशन ने बिहार का दौरा किया, तो यहां के नेताओं और जनता ने काले झंडे दिखाकर इसका विरोध किया। प्रमुख नेता, जैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, और अनुग्रह नारायण सिन्हा, इस विरोध के प्रमुख चेहरे बने।

बिहार के प्रमुख नेता और उनका योगदान

नेता का नामयोगदान
डॉ. राजेंद्र प्रसादसाइमन कमिशन के खिलाफ आंदोलन को संगठित किया और जनता को स्वराज की दिशा में प्रेरित किया।
मौलाना मजहरुल हकबिहार में जनता को एकजुट कर काले झंडे के साथ कमिशन का विरोध किया।
अनुग्रह नारायण सिन्हाकिसानों और मजदूरों को आंदोलन में शामिल कर विरोध को मजबूत किया।

बिहार में प्रमुख विरोध प्रदर्शन

  1. पटना में विरोध रैली: पटना में साइमन कमिशन के आगमन पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। हजारों लोगों ने कमिशन के खिलाफ काले झंडे दिखाए और “साइमन, गो बैक” के नारे लगाए।
  2. मुजफ्फरपुर में आंदोलन: मुजफ्फरपुर में छात्रों और युवाओं ने इस आंदोलन को और तेजी दी। यहां के लोगों ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ संगठित विरोध प्रदर्शन किए और कमिशन को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत को अब स्वराज चाहिए।
  3. गया में जनआंदोलन: गया जिले में किसानों और मजदूरों ने भी साइमन कमिशन के खिलाफ अपने असंतोष को व्यक्त किया। यहां के स्थानीय नेताओं ने ब्रिटिश उत्पादों के बहिष्कार की अपील की और स्वदेशी वस्त्रों का समर्थन बढ़ाया।

बिहार में साइमन कमिशन के विरोध का प्रभाव

साइमन कमिशन के खिलाफ बिहार के विरोध ने यहां की जनता में स्वतंत्रता की भावना को और गहराई से स्थापित किया। इस आंदोलन ने भारतीयों में राजनीतिक चेतना और आत्मनिर्भरता की भावना को मजबूत किया, जिसने बाद में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार की भागीदारी को और सशक्त किया।

साइमन कमिशन के विरोध के बिहार पर प्रमुख प्रभाव:

प्रभावविवरण
राजनीतिक जागरूकताबिहार में जनता ने ब्रिटिश शासकों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संगठित रूप से विरोध करना शुरू किया।
स्वराज की मांगइस आंदोलन ने स्वराज की मांग को और मजबूती दी और लोगों को स्वदेशी वस्त्रों का समर्थन करने की प्रेरणा दी।
राष्ट्रीय एकजुटताबिहार की जनता ने इस विरोध के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई।

साइमन कमिशन का विरोध: बिहार के युवाओं की भूमिका

इस आंदोलन में बिहार के युवा, विशेष रूप से छात्र, अग्रणी भूमिका में थे। पटना विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर कॉलेज, और गया कॉलेज के छात्रों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। वे न केवल विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए, बल्कि स्वदेशी वस्त्रों का समर्थन करने के लिए अभियान भी चलाए। बिहार के युवाओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया और साइमन कमिशन के बहिष्कार में अहम भूमिका निभाई।

समूहयोगदान
छात्रकाले झंडों के साथ कमिशन का विरोध किया और स्वराज का समर्थन किया।
किसानब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाया।
व्यापारीब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार किया और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाया।

निष्कर्ष

बिहार में साइमन कमिशन का विरोध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस आंदोलन ने बिहार की जनता में राजनीतिक जागरूकता और स्वराज की भावना को प्रबल किया। यहां के नेताओं और जनता ने संगठित होकर ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का कड़ा विरोध किया और स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। बिहार का यह संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अनमोल अध्याय बन गया है।


महत्वपूर्ण प्रश्न – उत्तर

प्रश्नउत्तर
साइमन कमीशन का नाम किसके ऊपर रखा गया था?जॉन साइमन के नाम पर।
साइमन कमीशन भारत कब आया?1928 में।
साइमन कमीशन को किस नाम से भी जाना जाता है?भारतीय संवैधानिक आयोग।
साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय किसके नेतृत्व में हुआ?अनुग्रह नारायण सिन्हा के नेतृत्व में सर्वदलीय बैठक में।
साइमन कमीशन कब पटना पहुंचा?12 दिसंबर 1928 को।
साइमन कमीशन कब रांची पहुंचा?24 दिसंबर 1928 को।
पटना और रांची में साइमन कमीशन का क्या किया गया?दोनों स्थानों पर बहिष्कार किया गया।
प्रश्नउत्तर
साइमन कमीशन का विरोध क्यों किया गया?क्योंकि इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था और इसे भारतीय जनता की इच्छा के खिलाफ माना गया।
साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का क्या तरीका अपनाया गया?प्रदर्शन, काले झंडे दिखाकर और नारे लगाकर इसका बहिष्कार किया गया।
साइमन कमीशन के खिलाफ सबसे प्रसिद्ध नारा क्या था?“साइमन गो बैक”।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट का क्या उद्देश्य था?भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए सिफारिशें देना।
साइमन कमीशन के खिलाफ किस प्रमुख नेता ने आवाज उठाई?लाला लाजपत राय ने।
लाला लाजपत राय के साइमन कमीशन विरोध के दौरान क्या हुआ?उन्हें पुलिस लाठीचार्ज में गंभीर चोटें आईं, जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

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