असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक और बड़ा जनांदोलन था, जिसे 1920 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ शुरू किया। बिहार, जो इस समय सामाजिक और राजनीतिक रूप से अत्यधिक सक्रिय था, असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला राज्य बना। इस आंदोलन ने बिहार की जनता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया, और यहां के समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर छोड़ा।
असहयोग आंदोलन की शुरुआत और बिहार में भूमिका
जलियांवाला बाग हत्याकांड और खिलाफत आंदोलन के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ने का फैसला किया। उनका आह्वान था कि भारतीय लोग ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित संस्थाओं का बहिष्कार करें और स्वराज की दिशा में कदम बढ़ाएं। बिहार के प्रमुख नेता, जैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, और अनुग्रह नारायण सिन्हा ने गांधीजी के इस आह्वान का पूरे दिल से समर्थन किया। इन नेताओं ने बिहार के विभिन्न हिस्सों में घूम-घूमकर लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
बिहार में आंदोलन की मुख्य गतिविधियां
- शिक्षा और सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार: असहयोग आंदोलन के तहत बिहार में ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया गया। छात्रों और शिक्षकों ने सरकारी संस्थानों को छोड़कर स्वदेशी शिक्षा का समर्थन किया। पटना सहित कई जिलों में बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूलों से हटकर स्वतंत्र विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने का चलन शुरू हुआ।
- स्वदेशी आंदोलन और खादी का प्रसार: गांधीजी के आह्वान पर बिहार में ब्रिटिश वस्त्रों और उत्पादों का व्यापक रूप से बहिष्कार किया गया। यहां के लोग खादी को अपनाकर स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने लगे। बिहार के गांवों में भी खादी का निर्माण और उपयोग बढ़ने लगा। स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग ने न केवल ब्रिटिश व्यापार को चोट पहुंचाई, बल्कि आत्मनिर्भरता की भावना को भी बल दिया।
- किसानों और ग्रामीणों की जागरूकता: बिहार के ग्रामीण इलाकों और किसानों ने भी असहयोग आंदोलन में भाग लिया। किसानों ने अंग्रेजों की भूमि और कर नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और ब्रिटिश शासन की नीतियों का प्रतिरोध किया। कई जगहों पर किसानों ने लगान (टैक्स) देने से मना कर दिया और अंग्रेजी हुकूमत के प्रति अपना असंतोष प्रकट किया।
- सरकारी नौकरियों का बहिष्कार: असहयोग आंदोलन के अंतर्गत बिहार में सरकारी पदों और नौकरियों से इस्तीफे का दौर चला। कई वकील, डॉक्टर और सरकारी अधिकारी अपने पदों से इस्तीफा देकर आंदोलन में शामिल हो गए। खासकर राजेंद्र प्रसाद और मजहरुल हक जैसे नेता ने सरकारी नौकरियों को छोड़कर आंदोलन का नेतृत्व किया।
बिहार के नेताओं का योगदान
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद: बिहार के सबसे प्रमुख नेता, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, इस आंदोलन के मुख्य ध्वजवाहक थे। उन्होंने बिहार की जनता को असहयोग आंदोलन के प्रति जागरूक किया और इस संघर्ष को बिहार के हर कोने तक पहुंचाया।
- मौलाना मजहरुल हक: मौलाना मजहरुल हक ने भी असहयोग आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सरकारी पद से इस्तीफा दिया और स्वदेशी विचारधारा का प्रचार करते हुए बिहार के गांवों और कस्बों में आंदोलन को गति दी।
- अनुग्रह नारायण सिन्हा: एक और प्रमुख नेता, अनुग्रह नारायण सिन्हा, जिन्होंने आंदोलन में किसानों और मजदूरों को संगठित किया और स्वदेशी उत्पादों के प्रयोग को प्रोत्साहित किया।
आंदोलन का बिहार पर प्रभाव
असहयोग आंदोलन ने बिहार के सामाजिक और आर्थिक ढांचे में गहरा बदलाव लाया:
- स्वराज की ओर पहला कदम: असहयोग आंदोलन ने बिहार की जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित होने और स्वराज की अवधारणा को समझने का अवसर प्रदान किया। लोगों ने पहली बार सामूहिक रूप से यह समझा कि ब्रिटिश शासन से आजादी संभव है।
- स्वदेशी अर्थव्यवस्था का विकास: बिहार में खादी और स्वदेशी वस्त्रों का व्यापक उत्पादन होने लगा। इसने न केवल ब्रिटिश व्यापार को नुकसान पहुंचाया बल्कि बिहार में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया, जिससे यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिला।
- राजनीतिक चेतना का उदय: असहयोग आंदोलन ने बिहार के लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा की। गांव-गांव में लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग हुए और यह समझा कि संगठित होकर वे अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों का विरोध कर सकते हैं।
आंदोलन की समाप्ति और बिहार की भूमिका
1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया। हालांकि, बिहार में इस आंदोलन का गहरा प्रभाव रहा। इस आंदोलन ने यहां के लोगों को स्वराज की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम में उनका विश्वास और भी मजबूत किया।
निष्कर्ष
असहयोग आंदोलन ने बिहार को स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख केंद्रों में से एक बना दिया। यहां की जनता ने गांधीजी के मार्गदर्शन में ब्रिटिश शासन का अहिंसक प्रतिरोध किया और स्वदेशी उत्पादों को अपनाकर राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती दी। बिहार का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हमेशा स्मरणीय रहेगा।
महत्वपूर्ण प्रश्न – उत्तर
प्रश्न | उत्तर |
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असहयोग आंदोलन किस पृष्ठभूमि में शुरू किया गया? | खिलाफत मुद्दा, रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग की घटनाओं के बाद। |
बिहार कांग्रेस की प्रांतीय बैठक कब हुई? | अगस्त 1920 में। |
बिहार कांग्रेस की बैठक में असहयोग प्रस्ताव किसने पेश किया? | धरनीधर प्रसाद और शाह मोहम्मद जुबैर ने। |
असहयोग आंदोलन के दौरान 15 अगस्त 1920 को कौन सी समिति बनी? | हिजरत समिति। |
1922 में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन क्यों वापस लिया? | चौरी-चौरा की घटना के कारण। |
मुंगेर और भागलपुर में असहयोग आंदोलन के दौरान कौन सा बहिष्कार हुआ? | घाट और पाउंड की नीलामी का बहिष्कार। |
असहयोग आंदोलन के दौरान पटना में क्या हड़ताल हुई? | सरकारी प्रेस में हड़ताल हुई। |
बिहार में असहयोग आंदोलन के दौरान कौन सा राष्ट्रीय कॉलेज स्थापित हुआ? | पटना-गया रोड पर राजेंद्र प्रसाद के प्रधानाचार्यत्व में राष्ट्रीय कॉलेज। |
गांधीजी ने 1920 में बिहार का दौरा कब किया? | दिसंबर 1920 में। |
बिहार में गांधीजी ने किस चीज के बहिष्कार का नेतृत्व किया? | भागलपुर में शराब की दुकानों का। |
तिलक की मृत्यु पर बिहार में किस समिति का गठन हुआ? | तिलक स्मारक समिति। |
मार्च-अप्रैल 1921 में बिहार में किसका हड़ताल हुआ? | पुलिस हड़ताल। |
गांधीजी ने बिहार नेशनल कॉलेज और बिहार विद्यापीठ का उद्घाटन कब किया? | बिहार नेशनल कॉलेज: 5 जनवरी 1921, बिहार विद्यापीठ: 6 फरवरी 1921। |
मजहर-उल-हक ने 30 सितंबर 1921 को कौन सा अखबार शुरू किया? | ‘द मदरलैंड’। |
22 दिसंबर 1921 को किस ब्रिटिश शहजादे ने बिहार का दौरा किया? | ब्रिटिश प्रिंस। |
असहयोग आंदोलन के दौरान महेंद्र प्रसाद ने कौन सा खिताब लौटाया? | ‘राय साहब’ का खिताब। |
असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था? | ब्रिटिश सरकार से सहयोग वापस लेकर स्वतंत्रता संग्राम को तेज करना। |
गांधीजी ने असहयोग आंदोलन के दौरान कौन सी प्रमुख रणनीति अपनाई? | स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग, ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार और अहिंसक विरोध। |
असहयोग आंदोलन का प्रभाव क्या था? | भारतीय जनता में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष और जागरूकता। |
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