बिहार किसान सभा
बिहार किसान सभा (Bihar Kisan Sabha) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और किसानों के अधिकारों की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। इसकी स्थापना 1929 में स्वामी सहजानंद सरस्वती द्वारा की गई थी, जो भारतीय किसानों के महान नेता और समाज सुधारक थे। बिहार किसान सभा का मुख्य उद्देश्य किसानों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करना था, खासकर जमींदारी प्रथा और भूमि सुधारों के खिलाफ आवाज उठाना।
गठन और उद्देश्य
1920 और 1930 के दशक में, बिहार के किसान जमींदारों और अंग्रेजी हुकूमत के शोषण का शिकार थे। किसानों से भारी लगान वसूला जाता था, और उनके पास अपनी जमीन पर अधिकार नहीं था। इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहार किसान सभा की स्थापना की। इसका उद्देश्य था:
- जमींदारी प्रथा का अंत: किसानों को उनकी जमीन पर मालिकाना हक दिलाना।
- किसानों के हितों की रक्षा: किसानों के शोषण के खिलाफ संघर्ष करना और उनके आर्थिक अधिकारों की मांग करना।
- जमीन सुधार: कृषि भूमि का उचित वितरण ताकि हर किसान को उसका हक मिल सके।
आंदोलन और संघर्ष
बिहार किसान सभा ने कई बड़े आंदोलन किए, जिनमें प्रमुख था तेभागा आंदोलन। यह आंदोलन किसानों के हिस्से की उपज को बढ़ाने और जमींदारों से अधिकार प्राप्त करने के लिए लड़ा गया था। इसके अलावा, किसान सभा ने जमींदारी प्रथा के खिलाफ कई सत्याग्रह और प्रदर्शन आयोजित किए, जिससे किसानों को काफी समर्थन मिला।
किसान सभा ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भी मोर्चा खोला, क्योंकि ब्रिटिश सरकार किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही थी। इस संघर्ष के दौरान किसान सभा ने कई रैलियों और सभाओं का आयोजन किया, जिनमें हजारों किसान शामिल हुए। इन आंदोलनों ने बिहार के किसानों को संगठित किया और उनके हक की लड़ाई को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया।
प्रभाव और धरोहर
बिहार किसान सभा के आंदोलनों का प्रभाव यह हुआ कि 1950 के दशक में भारत सरकार ने जमींदारी प्रथा का अंत किया और भूमि सुधार कानून लागू किए। इससे किसानों को उनकी जमीन पर अधिकार मिला और उनके शोषण में कमी आई। बिहार किसान सभा ने न केवल किसानों को उनके अधिकार दिलाने में मदद की, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
बिहार किसान सभा भारतीय किसानों की आवाज और उनके अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है। स्वामी सहजानंद सरस्वती और उनके साथियों ने जो संघर्ष किया, उसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय किसानों को अपनी जमीन और आजीविका पर अधिकार मिला। आज भी बिहार किसान सभा का इतिहास हमें याद दिलाता है कि संगठित संघर्ष से बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है।
बिहार प्रांतीय किसान सभा-Bihar Kisan Sabha से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न -उत्तर
प्रश्न | उत्तर |
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किसान सभा की शुरुआत किस घटना से प्रेरित होकर की गई? | चंपारण घटना से। |
स्वामी विद्याणंद ने किस स्थान पर किसान सभा शुरू की? | मधुबनी। |
किसान सभा का आयोजन जगन्नाथ पाठक ने कहाँ किया? | हिलसा में। |
किसान सभा की स्थापना मंगर में किसने की? | श्री कृष्ण सिंह और शाह मोहम्मद जुबैर ने। |
बिहार प्रांतीय किसान सभा (BPKS) का गठन किसने किया? | स्वामी सहजानंद सरस्वती ने। |
बिहार प्रांतीय किसान सभा का उद्देश्य क्या था? | किसानों की शिकायतों को समेटना और ज़मींदारी हमलों के खिलाफ उनकी ज़मीन अधिकारों की रक्षा करना। |
ज़मींदारों ने किस पार्टी का गठन किया? | यूनाइटेड पॉलिटिकल पार्टी। |
1936 में अखिल भारतीय किसान सभा कहाँ स्थापित की गई? | लखनऊ में। |
राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में किस उद्देश्य के लिए समिति बनाई गई? | किसानों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए। |
स्वामी सहजानंद सरस्वती और उनके अनुयायी कौन थे? | पंडित यमुनाकरजी, राहुल सांस्कृत्यायन और अन्य। |
पंडित यमुनाकरजी और राहुल सांस्कृत्यायन ने 1940 में क्या प्रकाशित किया? | हिंदी साप्ताहिक ‘हूंक़र’। |
हूंक़र पत्रिका किस आंदोलन की वकालत करती थी? | किसान आंदोलन और कृषि आंदोलन। |
किसान सभा का मुख्य उद्देश्य क्या था? | किसानों के अधिकारों की रक्षा करना और ज़मींदारी प्रणाली के खिलाफ आंदोलन करना। |
स्वामी सहजानंद सरस्वती का क्या योगदान था? | उन्होंने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया और किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। |
हूंक़र पत्रिका के संपादक कौन थे? | पंडित यमुनाकरजी और राहुल सांस्कृत्यायन। |
किसान सभा के आंदोलन के प्रमुख मुद्दे क्या थे? | ज़मींदारों के अत्याचार, भूमि अधिकार और फसल के उचित मूल्य की मांग। |