किसी समय की बात है, जब बिहार केवल गंगा के तट पर बसे छोटे-छोटे गांवों का समूह था। इस धरती पर हजारों वर्षों पहले सभ्यता का ऐसा दीप जलाया गया, जिसने पूरे विश्व को आलोकित कर दिया। बिहार की यह भूमि न केवल भारत के गौरवशाली अतीत की गवाह है, बल्कि विश्व इतिहास में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है।
आज, बिहार के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हमें तीन प्रमुख स्रोतों की ओर देखना पड़ता है: पुरातात्त्विक साक्ष्य, साहित्यिक स्रोत, और विदेशी यात्रियों के वर्णन। आइए, इनसे जुड़ी कहानियों को करीब से जानें।
पुरातात्त्विक साक्ष्य: इतिहास के पत्थर और शिलालेख बोलते हैं
मौर्यकाल का वैभव: कुम्हरार का अठारह-खंभा सभागार
कल्पना कीजिए, पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) के कुम्हरार क्षेत्र में खंभों से सजी एक भव्य सभा, जहां मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त और अशोक जैसे शासक अपनी नीतियों पर चर्चा करते थे। 1912-13 में डेविड ब्रेनार्ड स्पूनर ने खुदाई के दौरान यहाँ के खंडहरों को खोजा।
- ये खंभे चूणार के बलुआ पत्थर से बने थे।
- सभागार की छत लकड़ी की थी, जिसे ये खंभे संभालते थे।
अशोक स्तंभ: शक्ति और संदेश के प्रतीक
अशोक महान के शासनकाल के स्तंभ आज भी उनकी प्रशासनिक कुशलता और धार्मिक संदेश का प्रतीक हैं।
- वैशाली, लौरिया अरेराज, लौरिया नंदनगढ़ और रामपुरवा में पाए गए स्तंभ।
- इन पर ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में शिलालेख खुदे हैं।
- अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को फैलाने के लिए इन स्तंभों का उपयोग किया।
बाराबर और नागार्जुनी की गुफाएँ: मौर्यकालीन वास्तुकला की उत्कृष्टता
बाराबर की गुफाएँ, गया के पास स्थित हैं, जो मौर्य सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ द्वारा आजीवक भिक्षुओं को समर्पित की गई थीं।
- लुमास ऋषि गुफा, सुदामा गुफा, और गोपी गुफा जैसी संरचनाएँ उत्कृष्ट वास्तुशिल्प का प्रमाण हैं।
- नागार्जुनी पहाड़ियों की गुफाओं में दशरथ द्वारा उत्कीर्ण शिलालेख उनके काल के समाज और संस्कृति की जानकारी देते हैं।
नालंदा और विक्रमशिला: शिक्षा के प्राचीन केंद्र
बिहार की सबसे गौरवशाली उपलब्धियों में से एक है बौद्ध धर्म के शिक्षा केंद्र—नालंदा और विक्रमशिला।
- नालंदा में खुदाई से स्तूप, विहार और पुस्तकालय के अवशेष मिले।
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय, भागलपुर के अंतिचक में स्थित, पाल वंश के संरक्षण में फला-फूला।
कुशाणकालीन अवशेष: चिरांद का अनमोल खजाना
- चिरांद (सारण जिले में) से कुशाण काल के भवनों के खंडहर मिले हैं।
- बक्सर और पटना से टेराकोटा की मानव आकृतियाँ प्राप्त हुईं।
शिलालेख: पत्थरों पर उकेरी गई कहानियाँ
शिलालेख, बिहार के अतीत की कहानियाँ पत्थरों पर लिखी गईं हैं।
- लौरिया अरेराज और लौरिया नंदनगढ़: अशोक के काल के स्तंभ शिलालेख।
- बाराबर गुफा शिलालेख: मौर्य सम्राट दशरथ द्वारा आजीवक संप्रदाय को समर्पित।
- गुप्तकालीन तांबे की पट्टिकाएँ:
- गया, नालंदा और मुंगेर से प्राप्त, ये पट्टिकाएँ पाल राजाओं के शासन में सामाजिक और प्रशासनिक स्थितियों की जानकारी देती हैं।
- श्रीलंकाई भिक्षु महामना द्वितीय के बोधगया से जुड़े शिलालेख।
मुद्राएँ: व्यापार और साम्राज्य की कहानियाँ
प्राचीन बिहार में व्यापार और अर्थव्यवस्था का प्रमाण इन मुद्राओं से मिलता है।
- पंच-चिन्हित चांदी की मुद्राएँ: पटना और पूर्णिया में मिलीं।
- कुशाणकालीन तांबे की मुद्राएँ: बक्सर और चिरांद से 88 मुद्राएँ मिलीं।
- गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएँ: हाजीपुर से प्राप्त।
साहित्यिक स्रोत: पांडुलिपियों से झांकता इतिहास
वैदिक साहित्य
- ऋग्वेद में बिहार को किकटा कहा गया और यहाँ के लोगों को व्रात्य।
- शतपथ ब्राह्मण में आर्यों के गंगा के पार विस्तार का वर्णन।
पुराण और महाकाव्य
- रामायण और महाभारत में मगध और वैशाली का उल्लेख।
- राज्य की धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक संरचना का विवरण।
बौद्ध साहित्य
- त्रिपिटक और जातक कथाओं में मगध साम्राज्य और नालंदा विश्वविद्यालय का विवरण।
जैन साहित्य
- महावीर स्वामी का वैशाली में जन्म।
- पावापुरी में निर्वाण स्थल।
विदेशी यात्रियों का वर्णन
- मेगस्थनीज: मौर्य साम्राज्य के वैभव का वर्णन।
- ह्वेनसांग और फाह्यान: नालंदा और पाटलिपुत्र की समृद्धि का विवरण।
बिहार के प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल
स्थल | स्थान | जिला |
---|---|---|
अशोक स्तंभ | लौरिया अरेराज | पूर्वी चंपारण |
विक्रमशिला मठ | अंतिचक | भागलपुर |
बौद्ध मूर्तियाँ | गुनेरी | गया |
स्तूप और मौर्यकालीन दीवार | पहाड़ीदिह | पटना |
गुफाएँ और स्तंभ | बाराबर और नागार्जुनी | जहानाबाद |
निष्कर्ष: अतीत से सीखने का समय
बिहार का इतिहास न केवल हमें प्राचीन सभ्यता की झलक देता है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि किस तरह समाज ने विज्ञान, कला और धर्म में उत्कृष्टता प्राप्त की। इस यात्रा में शिलालेख, मुद्राएँ, स्तंभ, और साहित्य, सभी अपनी कहानियाँ कहते हैं।
बिहार का यह अतीत हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे संजोएं और आने वाली पीढ़ियों को इसका महत्व समझाएं।