छठ पूजा क्या है?
छठ पूजा बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला एक प्राचीन और पवित्र पर्व है। यह मुख्यतः सूर्य देवता (सूर्य भगवान) और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। छठ पूजा को सूर्य उपासना का महापर्व माना जाता है, जिसमें भक्तगण सूर्य भगवान को धन्यवाद देते हैं और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा कब मनाई जाती है?
छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर दिवाली के छह दिन बाद आती है। इस समय पर सूर्य देवता की उपासना से अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशियों की कामना की जाती है।
छठ पूजा के चार महत्वपूर्ण दिन
छठ पूजा चार दिनों तक मनाया जाता है। हर दिन का अपना एक विशेष महत्व और अलग-अलग विधियाँ होती हैं:
1. नहाय खाय
पहले दिन को ‘नहाय खाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रती (व्रत करने वाले) गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। घर को स्वच्छ रखा जाता है और खाने में सादगी होती है। इस दिन भोजन में कद्दू की सब्जी और चने की दाल खासतौर पर बनाई जाती है।
2. खरना
दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निराहार (बिना अन्न या जल के) व्रत रखते हैं। शाम को सूर्य देव को प्रसाद अर्पित करके व्रत तोड़ा जाता है। प्रसाद में मुख्यतः गुड़ से बनी खीर, चावल की रोटी और केला होता है। खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं।
3. संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन संध्या के समय नदी, तालाब या जलाशय के किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती विशेष पकवान और मौसमी फलों से भरी बाँस की टोकरियाँ लेकर जल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा करते हैं। इस समय का दृश्य बहुत भव्य होता है और इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।
4. उषा अर्घ्य
चौथे और अंतिम दिन सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती सुबह जल्दी उठकर नदी के किनारे जाते हैं और जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रत समाप्त किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है।
छठ पूजा कब है
चलिए, छठ पूजा के 2024 के लिए महत्वपूर्ण तिथियाँ जानते हैं:
- नहाय खाय – 5 नवंबर 2024 (मंगलवार)
इस दिन छठ पूजा की शुरुआत होती है। व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके शुद्ध भोजन करते हैं। - खरना – 6 नवंबर 2024 (बुधवार)
व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर और रोटी से व्रत तोड़ते हैं। - संध्या अर्घ्य – 7 नवंबर 2024 (गुरुवार)
इस दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा करते हैं। - उषा अर्घ्य – 8 नवंबर 2024 (शुक्रवार)
अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न की जाती है। इसके बाद व्रतियों का उपवास समाप्त होता है और प्रसाद बांटा जाता है।
2024 के लिए छठ पूजा की संपूर्ण तिथियाँ:
- नहाय खाय – 5 नवंबर
- खरना – 6 नवंबर
- संध्या अर्घ्य – 7 नवंबर
- उषा अर्घ्य – 8 नवंबर
यह पर्व विशेष निष्ठा और अनुशासन के साथ किया जाता है, और हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है।
छठ पूजा का महत्व और धार्मिक आस्था
छठ पूजा का सबसे विशेष पहलू है इसकी सादगी और शुद्धता। इस पूजा में कोई मूर्ति पूजा नहीं होती, बल्कि सीधे सूर्य देव की उपासना की जाती है। सूर्य देव को जीवन का आधार माना गया है और वे हमारे स्वास्थ्य और ऊर्जा का मुख्य स्रोत हैं। छठ पूजा में महिलाएँ पारंपरिक पीले या नारंगी रंग की साड़ियाँ पहनती हैं, जो आस्था और भक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
छठ पूजा के प्रसाद और सामग्री
छठ पूजा में प्रयुक्त प्रसाद साधारण होते हैं, लेकिन इनका धार्मिक महत्व होता है। इसमें मुख्यतः मौसमी फल, ठेकुआ (गुड़ और आटे से बनी मिठाई), गन्ना, नारियल, और केले शामिल होते हैं। इन प्रसादों को बाँस की टोकरियों में सजाया जाता है, जो पूजा की पवित्रता को दर्शाते हैं।
छठ पूजा में अपनाई जाने वाली सावधानियाँ
छठ पूजा में शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। घरों की साफ-सफाई की जाती है, और भोजन व प्रसाद बिना लहसुन-प्याज के बनाया जाता है। यह पर्व पूरी निष्ठा और श्रद्धा से मनाया जाता है, और सभी नियमों का पालन करना अति आवश्यक होता है।
बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व है, और इसे राज्य का सबसे प्रमुख और भावनात्मक रूप से जुड़ा पर्व माना जाता है। बिहार के लोग इसे बहुत ही श्रद्धा, निष्ठा और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाते हैं। आइए जानते हैं बिहार में छठ पूजा से जुड़े कुछ खास पहलू:
छठ पूजा की बिहार में सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता
छठ पूजा बिहार की संस्कृति और परंपराओं में गहराई से रची-बसी है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि बिहार के लोगों को एकजुट करने वाला अवसर भी है। यह पर्व बिहार के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में समान रूप से मनाया जाता है। हर वर्ग, जाति और समुदाय के लोग इस पर्व में शामिल होते हैं और एक साथ मिलकर इसकी रौनक बढ़ाते हैं।
गंगा घाटों का महत्व और तैयारी
बिहार में पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, और दरभंगा जैसे शहरों में गंगा और अन्य नदियों के घाटों को छठ पूजा के लिए विशेष रूप से सजाया और साफ किया जाता है। पटना में गाँधी घाट, काली घाट, दानापुर घाट जैसे प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। छठ पूजा से पहले, सरकार और स्थानीय प्रशासन इन घाटों की सफाई, सुरक्षा, और रौशनी की व्यवस्था करते हैं, ताकि श्रद्धालु सुरक्षित और पवित्र माहौल में पूजा कर सकें।
सामूहिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक
बिहार में छठ पूजा सामूहिकता और एकता का पर्व है। सभी लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ घाटों पर जाते हैं। छठ पूजा के दौरान सामुदायिक भावना बहुत मजबूत होती है, और सभी मिलकर पूजा की तैयारी करते हैं, जिससे सामाजिक सद्भावना बढ़ती है। यहाँ तक कि जो लोग दूसरे राज्यों या देशों में रहते हैं, वे भी इस समय बिहार आकर छठ पूजा मनाते हैं।
बिहार सरकार की विशेष व्यवस्था
बिहार सरकार हर वर्ष छठ पूजा के दौरान विशेष प्रबंध करती है। घाटों की सफाई, बिजली व्यवस्था, चिकित्सा सुविधा, और सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जाते हैं। पटना जैसे बड़े शहरों में विशेष ट्रैफिक व्यवस्था होती है ताकि श्रद्धालुओं को घाटों तक पहुँचने में किसी तरह की परेशानी न हो। बिहार राज्य पर्यटन विभाग भी कई प्रमुख घाटों पर पंडाल और आपातकालीन सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
छठ गीत और सांस्कृतिक धरोहर
बिहार में छठ पूजा के दौरान विशेष छठ गीतों का गाना एक परंपरा है। “काँच ही बांस के बहंगिया” जैसे छठ गीतों में छठी मइया और सूर्य देवता के प्रति आस्था प्रकट की जाती है। इन गीतों को सुनकर लोग भावुक हो जाते हैं और इनकी गूंज घाटों पर विशेष माहौल बना देती है। यह गीत बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं।
बिहार के बाहर रहने वाले बिहारियों का छठ से जुड़ाव
छठ पूजा न केवल बिहार में बल्कि विदेशों में बसे बिहारियों द्वारा भी पूरे उत्साह और आस्था के साथ मनाई जाती है। बिहार से बाहर रहने वाले लोग अपने गाँव, परिवार और संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखने के लिए इस पर्व में अपने राज्य लौटते हैं या जहाँ भी संभव हो, वहीं पर छठ पूजा का आयोजन करते हैं। दिल्ली, मुंबई और पंजाब जैसे राज्यों में बसे बिहारियों के लिए भी यह पर्व उनकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।
निष्कर्ष
बिहार में छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं है, यह एक गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि बिहार के लोगों की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। छठ पूजा बिहारवासियों के दिलों में बसे गौरव, अनुशासन, और समाज की भावना को उजागर करती है।
छठ पूजा की इस पवित्र परंपरा को समझने और उसे जीवित रखने के लिए बिहार के लोग हर साल पूरे उत्साह से इसे मनाते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इसके महत्व से अवगत कराते हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा एक अद्वितीय पर्व है, जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व से जुड़ी परंपराएँ और रीति-रिवाज बिहार की समृद्ध संस्कृति का परिचय देते हैं। छठ पूजा में सूर्य देवता के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है और परिवार में सुख-शांति की कामना की जाती है।
छठ पूजा के इस पवित्र और शुभ अवसर पर हम सभी मिलकर सूर्य देव से प्रार्थना करते हैं कि वे सभी के जीवन में खुशियाँ और समृद्धि लाएँ।