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ISRO का 100वाँ सफल प्रक्षेपण: NVS-02 उपग्रह और नाविक का नया युग

श्रीहरिकोटा, 30 जनवरी 2025 – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कल 29 जनवरी 2025 को अपने ऐतिहासिक 100वें प्रक्षेपण के साथ एक नया अध्याय जोड़ दिया। GSLV-F15 रॉकेट के माध्यम से NVS-02 नेविगेशन उपग्रह को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करते हुए ISRO ने न सिर्फ़ एक मील का पत्थर पार किया, बल्कि भारत के स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम नाविक (NavIC) को और अधिक विश्वसनीय बनाने की दिशा में बड़ी छलांग लगाई। यह मिशन भारत को वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के मानचित्र पर एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने का प्रमाण है।


नाविक (NavIC): भारत की ‘स्वदेशी GPS’ की यात्रा

नाविक (Navigation with Indian Constellation) भारत का स्वनिर्मित क्षेत्रीय नेविगेशन प्रणाली है, जिसे IRNSS (Indian Regional Navigation Satellite System) के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रणाली स्थिति, गति, और समय (PVT) सेवाएं प्रदान करती है और भारत तथा इसके 1,500 किमी के दायरे में स्थित पड़ोसी देशों को कवर करती है।

नाविक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • दोहरी सेवाएं:
    • स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस (SPS): आम नागरिकों, मछुआरों, किसानों और परिवहन क्षेत्र के लिए।
    • रिस्ट्रिक्टेड सर्विस (RS): रक्षा बलों और रणनीतिक उद्देश्यों के लिए एन्क्रिप्टेड सिग्नल।
  • सटीकता: स्थिति में 20 मीटर से कम और समय में 50 नैनोसेकंड से कम की त्रुटि।
  • संगतता: GPS (अमेरिका), ग्लोनास (रूस) और गैलीलियो (यूरोप) जैसी वैश्विक प्रणालियों के साथ काम करने की क्षमता।

व्यावहारिक उपयोग:

  • कृषि: ट्रैक्टर ऑटो-स्टीयरिंग और फसल निगरानी।
  • आपदा प्रबंधन: बाढ़ या भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों का समन्वय।
  • मछुआरों के लिए: समुद्र की सीमाओं का सटीक पता लगाना।

GSLV-F15 मिशन: कैसे बदला ISRO का गेम?

29 जनवरी को सुबह 11:03 बजे, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हुए GSLV-F15 ने अपने 19 मिनट के मिशन में न केवल इतिहास रचा, बल्कि नाविक प्रणाली को एक नए युग में पहुँचाया।

मिशन की मुख्य उपलब्धियाँ:

  1. NVS-02 उपग्रह की सफल स्थापना: यह दूसरी पीढ़ी का नाविक उपग्रह है, जो IRNSS-1E (2016 में लॉन्च) को प्रतिस्थापित करेगा।
  2. लंबी आयु: पिछले उपग्रहों के 10 वर्षों के मुकाबले, NVS-02 की परिचालन अवधि 12 वर्ष है।
  3. L1 बैंड का समावेश: यह बैंड GPS के साथ संगत है, जिससे नाविक अब स्मार्टफोन, स्मार्टवॉच और छोटे IoT उपकरणों में आसानी से इस्तेमाल हो सकेगा।
  4. उन्नत परमाणु घड़ियाँ: यूरोपियन कंपनी स्पेक्ट्राटाइम द्वारा विकसित रुबिडियम एटॉमिक क्लॉक्स का उपयोग, जो समय की गणना में पहले से अधिक सटीक हैं।

चुनौतियों से सबक:
2010 के दशक में पहली पीढ़ी के IRNSS उपग्रहों में 9 में से 7 परमाणु घड़ियाँ खराब हो गई थीं। इससे सीखते हुए, ISRO ने NVS श्रृंखला में विदेशी तकनीक के साथ-साथ स्वदेशी विकल्पों पर भी शोध तेज़ किया है।


NVS-02: क्यों है यह उपग्रह खास?

  • वजन और संरचना: 2,250 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह I-2K बस प्लेटफॉर्म पर आधारित है, जिसे भारतीय इंजीनियरों ने डिज़ाइन किया है।
  • मल्टी-फ्रीक्वेंसी सिग्नल: L1, L5, और S बैंड में डेटा प्रसारण की क्षमता।
  • सटीक स्थिति: इसे 111.75ºE देशांतर पर भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया है।
  • स्वदेशीकरण की ओर कदम: NVS श्रृंखला के अगले उपग्रहों में भारत में निर्मित परमाणु घड़ियों के उपयोग की योजना है।

नाविक का भविष्य: अब क्या है योजना?

ISRO ने NVS श्रृंखला के 5 उपग्रहों को लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है। NVS-02 की सफलता के बाद, NVS-03 और NVS-04 को 2026 तक लॉन्च किया जाएगा। इनके साथ ही नाविक का दायरा बढ़ाकर 3,000 किमी तक करने की योजना है।

नागरिक उपयोग में तेजी:

  • मोबाइल फोन: क्वालकॉम के नए चिपसेट (Snapdragon 8 Gen 4) NavIC सपोर्ट के साथ आएंगे।
  • ऑटोमोटिव सेक्टर: टाटा और महिंद्रा जैसी कंपनियाँ नाविक-आधारित नेविगेशन सिस्टम विकसित कर रही हैं।
  • ड्रोन प्रौद्योगिकी: कृषि और सर्वेक्षण में ड्रोन्स की सटीकता बढ़ाने के लिए नाविक का उपयोग।

विश्व मंच पर भारत की उपलब्धि

ISRO के चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ ने इस सफलता पर कहा, “यह मिशन केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि भारत की तकनीकी स्वावलंबन की गाथा है। नाविक अब वैश्विक स्तर पर भारत की ‘टेक्नो-डिप्लोमेसी’ का प्रतीक बनेगा।”

वैश्विक प्रतिक्रिया:

  • अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने ISRO को बधाई देते हुए NavIC और GPS के बीच इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाने की इच्छा जताई।
  • चीन के बेइदौ नेविगेशन प्रणाली के प्रतिनिधियों ने नाविक के साथ सहयोग की संभावना तलाशी।

निष्कर्ष: अंतरिक्ष में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की गूँज

ISRO का 100वाँ प्रक्षेपण न सिर्फ़ संख्याओं का खेल है, बल्कि यह उस संस्था की लचीलापन, नवाचार और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है जिसने चंद्रमा और मंगल तक भारत का परचम लहराया है। नाविक के माध्यम से अब भारत नेविगेशन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर है। आने वाले वर्षों में, यह प्रणाली न केवल सैन्य बल्कि आम नागरिकों की ज़िंदगी को भी आसान और सुरक्षित बनाएगी।

जय हिंद, जय विज्ञान! 🌍🚀


लेख में उल्लेखित तकनीकी विवरण ISRO की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियों और रिपोर्ट्स पर आधारित हैं।

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